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कांची के पल्‍लव - छठवीं सदी (Pallav King Singh Vishnu Empire)

छठवीं सदी की अंतिम चौथाई में पल्‍लव राजा सिंहविष्‍णु शक्तिशाली हुआ तथा कृष्‍णा व कावेरी नदियों के बीच के क्षेत्र को जीत लिया। उसका पुत्र व उत्‍तराधिकारी महेन्‍द्रवर्मन प्रतिभाशाली व्‍यक्ति था, जो दुर्भाग्‍य से चालुक्‍य राजा पुलकेसन द्वितीय के हाथों परास्‍त होकर अपने राज्‍य के उत्‍तरी भाग को खो बैठा। परन्‍तु उसके पुत्र नरसिंह वर्मन प्रथम ने चालुक्‍य शक्ति का दमन किया। पल्‍लव राज्‍य नरसिंह वर्मन द्वितीय के शासनकाल में अपने चरमोत्‍कर्ष पर पहुंचा। वह अपनी स्‍थापत्‍य कला की उपलब्धियों के लिए प्रसिद्ध था, उसने बहुत से मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा उसके समय में कला व साहित्‍य फला-फूला। संस्‍कृत का महान विद्वान दानदिन उस के राजदरबार में था। तथापि उसकी मृत्‍यु के बाद पल्‍लव साम्राज्‍य की अवनति होती गई। समय के साथ-साथ यह मात्र स्‍थानीय कबीले की शक्ति के रूप में रह गया। आखिरकार चोल राजा ने 9वीं इसवी. के समापन के आस-पास पल्‍लव राजा अपराजित को परास्‍त कर उसका साम्राज्‍य हथिया लिया। भारत के प्राचीन इतिहास ने, कई साम्राज्‍यों, जिन्‍होंने अपनी ऐसी बपौती पीछे छोड़ी है, जो भारत के स्‍वर्णिम इतिहास में

बादामी के चालुक्‍य - 6ठवीं और 8ठवीं इसवी ( Chakulya Empire)

6ठवीं और 8ठवीं इसवी के दौरान दक्षिण भारत में चालुक्‍य बड़े शक्तिशाली थे। इस साम्राज्‍य का प्रथम शास‍क पुलकेसन, 540 इसवी मे शासनारूढ़ हुआ और कई शानदार विजय हासिल कर उसने शक्तिशाली साम्राज्‍य की स्‍थापना किया। उसके पुत्रों कीर्तिवर्मन व मंगलेसा ने कोंकण के मौर्यन सहित अपने पड़ोसियों के साथ कई युद्ध करके सफलताएं अर्जित की व अपने राज्‍य का और विस्‍तार किया। कीर्तिवर्मन का पुत्र पुलकेसन द्वितीय, चालुक्‍य साम्राज्‍य के महान शासकों में से एक था, उसने लगभग 34 वर्षों तक राज्‍य किया। अपने लम्‍बे शासनकाल में उसने महाराष्‍ट्र में अपनी स्थिति सुदृढ़ की व दक्षिण के बड़े भूभाग को जीत लिया, उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि हर्षवर्धन के विरूद्ध रक्षात्‍मक युद्ध लड़ना थी। तथापि 642 इसवी में पल्‍लव राजा ने पुलकेसन को परास्‍त कर मार डाला। उसका पुत्र विक्रमादित्‍य, जो कि अपने पिता के समान महान शासक था, गद्दी पर बैठा। उसने दक्षिण के अपने शत्रुओं के विरूद्ध पुन: संघर्ष प्रारंभ किया। उसने चालुक्‍यों के पुराने वैभव को काफी हद तक पुन: प्राप्‍त किया। यहां तक कि उसका परपोता विक्रमादित्‍य द्वितीय भी महान योद्धा था। 753 इसवी

हर्षवर्धन - 606-647 इसवी (Harshwardhan Empire)

7वीं सदी के प्रारम्‍भ होने पर, हर्षवर्धन (606-647 इसवी में) ने अपने भाई राज्‍यवर्धन की मृत्‍यु होने पर थानेश्‍वर व कन्‍नौज की राजगद्दी संभाली। 612 इसवी तक उत्‍तर में अपना साम्राज्‍य सुदृढ़ कर लिया। 620 इसवी में हर्षवर्धन ने दक्षिण में चालुक्‍य साम्राज्‍य, जिस पर उस समय पुलकेसन द्वितीय का शासन था, पर आक्रमण कर दिया परन्‍तु चालुक्‍य ने बहुत जबरदस्‍त प्रतिरोध किया तथा हर्षवर्धन की हार हो गई। हर्षवर्धन की धार्मिक सहष्‍णुता, प्रशासनिक दक्षता व राजनयिक संबंध बनाने की योग्‍यता जगजाहिर है। उसने चीन के साथ राजनयिक संबंध स्‍थापित किए व अपने राजदूत वहां भेजे, जिन्‍होने चीनी राजाओं के साथ विचारों का आदान-प्रदान किया तथा एक दूसरे के संबंध में अपनी जानकारी का विकास किया। चीनी यात्री ह्वेनसांग, जो उसके शासनकाल में भारत आया था ने, हर्षवर्धन के शासन के समय सामाजिक, आर्थिक व धार्मिक स्थितियों का सजीव वर्णन किया है व हर्षवर्धन की प्रशंसा की है। हर्षवर्धन की मृत्‍यु के बाद भारत एक बार फिर केंद्रीय सर्वोच्‍च शक्ति से वंचित हो गया।

मौर्य साम्राज्‍य का अंत (End of Maurya Empire)

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अशोक के उत्‍तराधिकारी कमज़ोर शासक हुए, जिससे प्रान्‍तों को अपनी स्‍वतंत्रता का दावा करने का साहस हुआ। इतने बड़े साम्राज्‍य का प्रशासन चलाने के कठिन कार्य का संपादन कमज़ोर शासकों द्वारा नहीं हो सका। उत्‍तराधिकारियों के बीच आपसी लड़ाइयों ने भी मौर्य साम्राज्‍य के अवनति में योगदान किया। ईसवी सन् की प्रथम शताब्दि के प्रारम्‍भ में कुशाणों ने भारत के उत्‍तर पश्चिम मोर्चे में अपना साम्राज्‍य स्‍‍थापित किया। कुशाण सम्राटों में सबसे अधिक प्रसिद्ध सम्राट कनिष्‍क (125 ई. से 162 ई. तक), जो कि कुशाण साम्राज्‍य का तीसरा सम्राट था। कुशाण शासन ईस्‍वी की तीसरी शताब्दि के मध्‍य तक चला। इस साम्राज्‍य की सबसे महत्‍वपूर्ण उपलब्धियाँ कला के गांधार घराने का विकास व बुद्ध मत का आगे एशिया के सुदूर क्षेत्रों में विस्‍तार करना रही।

मौर्य साम्राज्‍य (Maurya Empire)

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  मौर्य साम्राज्‍य की अवधि (ईसा पूर्व 322 से ईसा पूर्व 185 तक) ने भारतीय इतिहास में एक युग का सूत्रपात किया। कहा जाता है कि यह वह अवधि थी जब कालक्रम स्‍पष्‍ट हुआ। यह वह समय था जब, राजनीति, कला, और वाणिज्‍य ने भारत को एक स्‍वर्णिम ऊंचाई पर पहुंचा दिया। यह खंडों में विभाजित राज्‍यों के एकीकरण का समय था। इससे भी आगे इस अवधि के दौरान बाहरी दुनिया के साथ प्रभावशाली ढंग से भारत के संपर्क स्‍थापित हुए। सिकन्‍दर की मृत्‍यु के बाद उत्‍पन्‍न भ्रम की स्थिति ने राज्‍यों को यूनानियों की दासता से मुक्‍त कराने और इस प्रकार पंजाब व सिंध प्रांतों पर कब्‍जा करने का चन्‍द्रगुप्‍त को अवसर प्रदान किया। उसने बाद में कौटिल्‍य की सहायता से मगध में नन्‍द के राज्‍य को समाप्‍त कर दिया और ईसा पूर्व और 322 में प्रतापी मौर्य राज्‍य की स्‍थापना की। चन्‍द्रगुप्‍त जिसने 324 से 301 ईसा पूर्व तक शासन किया, ने मुक्तिदाता की उपाधि प्रा‍प्‍त की व भारत के पहले सम्रा‍ट की उपाधि प्राप्‍त की। वृद्धावस्‍था आने पर चन्‍द्रगुप्‍त की रुचि धर्म की ओर हुई तथा ईसा पूर्व 301 में उसने अपनी गद्दी अपने पुत्र बिंदुसार के लिए छोड़ दी। अपने

सिकंदर का आक्रमण - Sikandar (Alexander) Attack

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  ईसा पूर्व 326 में सिकंदर सिंधु नदी को पार करके तक्षशिला की ओर बढ़ा व भारत पर आक्रमण किया। तब उसने झेलम व चिनाब नदियों के मध्‍य अवस्थ्ति राज्‍य के राजा पौरस को चुनौती दी। यद्यपि भारतीयों ने हाथियों, जिन्‍हें मेसीडोनिया वासियों ने पहले कभी नहीं देखा था, को साथ लेकर युद्ध किया, परन्‍तु भयंकर युद्ध के बाद भारतीय हार गए। सिकंदर ने पौरस को गिरफ्तार कर लिया, तथा जैसे उसने अन्‍य स्‍थानीय राजाओं को परास्‍त किया था, की भांति उसे अपने क्षेत्र पर राज्‍य करने की अनुमति दे दी। दक्षिण में हैडासयस व सिंधु नदियों की ओर अपनी यात्रा के दौरान, सिकंदर ने दार्शनिकों, ब्राह्मणों, जो कि अपनी बुद्धिमानी के लिए प्रसिद्ध थे, की तलाश की और उनसे दार्शनिक मुद्दों पर बहस की। वह अपनी बुद्धिमतापूर्ण चतुराई व निर्भय विजेता के रूप में सदियों तक भारत में किवदंती बना रहा। उग्र भारतीय लड़ाके कबीलों में से एक मालियों के गांव में सिकन्‍दर की सेना एकत्रित हुई। इस हमले में सिकन्‍दर कई बार जख्‍मी हुआ। जब एक तीर उसके सीने के कवच को पार करते हुए उसकी पसलियों में जा घुसा, तब वह बहुत गंभीर रूप से जख्‍मी हुआ। मेसेडोनियन अधिकारियों

बौद्ध युग (Buddhist Era)

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  भगवान गौतम बुद्ध के जीवनकाल में, ईसा पूर्व 7 वीं और शुरूआती 6 वीं शताब्दि के दौरान सोलह बड़ी शक्तियां (महाजनपद) विद्यमान थे। अति महत्‍वपूर्ण गणराज्‍यों में कपिलवस्‍तु के शाक्‍य और वैशाली के लिच्‍छवी गणराज्‍य थे। गणराज्‍यों के अलावा राजतंत्रीय राज्‍य भी थे, जिनमें से कौशाम्‍बी (वत्‍स), मगध, कोशल, और अवन्ति महत्‍वपूर्ण थे। इन राज्‍यों का शासन ऐसे शक्तिशाली व्‍यक्तियों के पास था, जिन्‍होंने राज्‍य विस्‍तार और पड़ोसी राज्‍यों को अपने में मिलाने की नीति अपना रखी थी। तथापि गणराज्‍यात्‍मक राज्‍यों के तब भी स्‍पष्‍ट संकेत थे जब राजाओं के अधीन राज्‍यों का विस्‍तार हो रहा था। बुद्ध का जन्‍म ईसा पूर्व 560 में हुआ और उनका देहान्‍त ईसा पूर्व 480 में 80 वर्ष की आयु में हुआ। उनका जन्‍म स्‍थान नेपाल में हिमालय पर्वत श्रंखला के पलपा गिरि की तलहटी में बसे कपिलवस्‍तु नगर का लुम्बिनी नामक निकुंज था। बुद्ध, जिनका वास्‍‍तविक नाम सिद्धार्थ गौतम था, ने बुद्ध धर्म की स्‍थापना की जो पूर्वी एशिया के अधिकांश हिस्‍सों में एक महान संस्‍कृति के रूप में वि‍कसित हुआ। 1. बुद्ध का युग और द्वितीय नगरीकरण (Buddha’s Peri